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Thursday, December 31, 2009
Tuesday, December 29, 2009
Monday, December 28, 2009
Thursday, December 24, 2009
Monday, December 14, 2009
Sunday, December 13, 2009
Friday, December 11, 2009
दिवा रानी...बड़ी सयानी...!
दिवा रानी !
कैसी हो ?आज बहुत दिनों बाद तुमसे ब्लॉग पर बात कर रही हूँ। इन्टरनेट पर तो हम अक्सर बात कर ही लेते हैं। तुम्हारी प्यारी-प्यारी बातें, तुम्हारी शरारात्तें हम सबको बहुत अच्छी लगती हैं। अब तो तुम सब बातें समझने लगी हो और अपनी बातें समझाने भी लगी हो।
मम्मा -पापा हमेशा तुम्हारी तुम्हारी फोटो और वीडियो हमें पिकासा पर भेजते रहते हैं। मैं उनमें से कुछ में अपने ब्लॉग में लगा देती हूँ और कुछ ऑरकुट में लगा देती हूँ ताकि सब लोग उन्हें देखें और अपनी प्यारी दिवा दी डुमडुम से मिलते रहें।
प्यारी दीबू ! आजकल तुम अपनी तीन पहियों वाली वाली साईकिल चलाती हो और पापा की नयी कार भी ! पापा -मम्मा के साथ गाना गाती हो और टीवी देख कर डांस भी करती हो। कभी मम्मा के साथ aकाम कराती हो तो कभी पापा के काम में मदद करती हो। अपनी बुक से कभी ख़ुद पढ़ती हो तो कभी मम्मा-पापा को ही पढ़ाती हो।
डुमडुम रानी ! आज कल तुम कभी चिड़िया , कुत्ता, कौवा , बन्दर, शेर, बिल्ली के आवाज निकलती हो तो कभी नानी तेरी मोरनी, दादी अम्मा , मम्मी ने चाय पे बुलाया है, लकड़ी की काठी ,चुन-चुन करती आयी चिड़िया ... जैसे गानों और बाबा ब्लैक शीप , क्लैप योर हैण्ड , मछली जल की रानी है ... जैसी कविताओं पर लुभावने एक्शन कर के दिखाती हो। दिवा ! तुम्हारी यह सब बातें हमें कितना लुभाती हैं... हम बता नहीं सकते।
मेरी नन्ही-मुन्नी गुड़िया ! तुम्हें कभी किसी की नजर न लगे। ईश्वर तुम्हें सदा खुश रखे। तुम खूब पढ़ो-लिखो , बुद्धिमान बनो। जग में कोई नया काम करो। अपना, अपने परिवार का और अपने देश
का नाम पूरे संसार में रोशन करो। तुम्हारे दादा-दादी और पूरे परिवार की यही कामना है । दिवा रानी
हम सबका आशीर्वाद सदैव तुम्हारे साथ है।
अगली बार तुम्हे फिर एक नयी कहानी सुनाऊँगी, जिसे मेरी दादीजी ने मुझे सुनाया था। जिसे मेरी दादीजी ने अपनी दादी माँ से सुना था और उन्होंने शायद अपनी दादी अम्मा से...!!! -तुम्हारी दादी।
कैसी हो ?आज बहुत दिनों बाद तुमसे ब्लॉग पर बात कर रही हूँ। इन्टरनेट पर तो हम अक्सर बात कर ही लेते हैं। तुम्हारी प्यारी-प्यारी बातें, तुम्हारी शरारात्तें हम सबको बहुत अच्छी लगती हैं। अब तो तुम सब बातें समझने लगी हो और अपनी बातें समझाने भी लगी हो।
मम्मा -पापा हमेशा तुम्हारी तुम्हारी फोटो और वीडियो हमें पिकासा पर भेजते रहते हैं। मैं उनमें से कुछ में अपने ब्लॉग में लगा देती हूँ और कुछ ऑरकुट में लगा देती हूँ ताकि सब लोग उन्हें देखें और अपनी प्यारी दिवा दी डुमडुम से मिलते रहें।
प्यारी दीबू ! आजकल तुम अपनी तीन पहियों वाली वाली साईकिल चलाती हो और पापा की नयी कार भी ! पापा -मम्मा के साथ गाना गाती हो और टीवी देख कर डांस भी करती हो। कभी मम्मा के साथ aकाम कराती हो तो कभी पापा के काम में मदद करती हो। अपनी बुक से कभी ख़ुद पढ़ती हो तो कभी मम्मा-पापा को ही पढ़ाती हो।
डुमडुम रानी ! आज कल तुम कभी चिड़िया , कुत्ता, कौवा , बन्दर, शेर, बिल्ली के आवाज निकलती हो तो कभी नानी तेरी मोरनी, दादी अम्मा , मम्मी ने चाय पे बुलाया है, लकड़ी की काठी ,चुन-चुन करती आयी चिड़िया ... जैसे गानों और बाबा ब्लैक शीप , क्लैप योर हैण्ड , मछली जल की रानी है ... जैसी कविताओं पर लुभावने एक्शन कर के दिखाती हो। दिवा ! तुम्हारी यह सब बातें हमें कितना लुभाती हैं... हम बता नहीं सकते।
मेरी नन्ही-मुन्नी गुड़िया ! तुम्हें कभी किसी की नजर न लगे। ईश्वर तुम्हें सदा खुश रखे। तुम खूब पढ़ो-लिखो , बुद्धिमान बनो। जग में कोई नया काम करो। अपना, अपने परिवार का और अपने देश
का नाम पूरे संसार में रोशन करो। तुम्हारे दादा-दादी और पूरे परिवार की यही कामना है । दिवा रानी
हम सबका आशीर्वाद सदैव तुम्हारे साथ है।
अगली बार तुम्हे फिर एक नयी कहानी सुनाऊँगी, जिसे मेरी दादीजी ने मुझे सुनाया था। जिसे मेरी दादीजी ने अपनी दादी माँ से सुना था और उन्होंने शायद अपनी दादी अम्मा से...!!! -तुम्हारी दादी।
Thursday, December 10, 2009
Monday, November 30, 2009
Saturday, November 21, 2009
Wednesday, November 18, 2009
nanha kachhua
मैं नन्हा प्यारा-सा कछुआ
नदी किनारे रहता हूँ
अपनी गरदन हिलाहिला कर
हेलो-हेलो करता हूँ
ठुम्मक-ठुम्मक डुमक-डुमक
धीमे -धीमे चलता हूँ
अपनी खोल मुझे है प्यारी
बाहर नहीं निकलता हूँ
Friday, November 6, 2009
Tuesday, October 27, 2009
Friday, October 23, 2009
डुमडुम की साइकिल
मम्मा - पापा ! जल्दी आओ,
मुझे घूमने जाना है
मुझे घूमने जाना है
देर हो गयी मुझको अब तो,
साइकिल तेज चलाना है
साइकिल तेज चलाना है
टप्पू , मोना, रिंकी, गुड़िया
सभी पार्क में पहुँच गए हैं
सभी पार्क में पहुँच गए हैं
अपनी साइकिल पर बिठला कर
सबको मुझे घुमाना है !
सबको मुझे घुमाना है !
Tuesday, October 13, 2009
लालच करना बुरी बला है
लालच करना बुरी बला है... 2
दिवा दी डुमडुम !
नदी के किनारे एक गाँव था । छोटा-सा, सुंदर-सा। वहाँ सभी लोग मिल-जुल कर रहते थे। जो कुछ भी होता मिल-बाँट कर खा-पी लेते थे। अपने पालतू जानवरों- गाय, बैल ,घोड़े, कुत्ते-सभी का गाँव वाले बहुत ख़याल रखते थे। जानवरों को वे समय से दाना -पानी देते थे। उनकी साफ -सफाई का पूरा ध्यान रखते थे। बचा हुआ खाना और अन्न का दाना वो लोग चिड़ियों को डाल देते थे । चिडियाँ उनके खेत में पैदा होने वाला अनाज कभी बरबाद नहीं करती थीं। उस गाँव में रहने वाले ग्रामवासी और पशु, पक्षी सभी बहुत खुश थे। वे आपस में खूब हिल-मिल कर रहते थे।
उसी गाँव में एक कुत्ता रहता था। वह बहुत लालची था। पेट भरा होने पर भी वह हमेशा दूसरों के खाने पर नज़र गड़ाए रहता था। कभी छोटे बच्चों के हाथ से रोटी छीन कर भाग जाता तो कभी किसी के घर में घुस कर खाना चुरा कर दूर कहीं जमीन में दबा कर रख आता था। कभी-कभी तो वह दूसरे पशु-पक्षियों और अपने साथियों से भी झगड़ा करने लगता था। उनका खाना छीन लेता था। सभी जानवर,चिडियाँ और गाँव वाले कुत्ते की इस गन्दी आदत से परेशान रहते थे। सभी लोग कुत्ते को सबक सिखाना चाहते थे और मौके की तलाश में थे।
एक दिन की बात है कुत्ता किसी के घर में घुस कर एक रोटी ले कर भागा। घर के मालिक ने उसे देख लिया वह उसके पीछे दौड़ा। उसने गाँव के सभी लोगों और पशु-पक्षियों को साथ लिया और उसी ओर चल दिया जिधर कुत्ता गया था। कुत्ता तेजी से नदी पर बने पुल की ओर जा रहा था । गाँव के लोग काफी पीछे थे। अब कुत्ता पुल पर पहुँच गया था। उसने अपने मुँह में रोटी दबा रखा था। पुल के नीचे नदी बह रही थी। कुत्ते ने नदी में झाँक कर देखा और ठिठक कर रुक गया - "यह क्या...? नदी में यह दूसरा कुत्ता कौन है ? इसके पास भी रोटी है...! अभी यह रोटी मैं उससे छीन लेता हूँ। " यह सोच कर कुत्ता गुर्राया। दूसरा कुत्ता भी गुर्राया। अब कुत्ता दूसरे कुत्ते पर जैसे ही भौंका उसके मुँह में दबी रोटी नदी के पानी में जा गिरी। कुत्ता दूसरे कुत्ते से रोटी छीनने के लिए नदी में कूद गया। पर यह क्या ? वहाँ तो कोई कुत्ता था ही नहीं ! यहाँ तो पानी ही पानी है...! तो यह उसकी परछाईं थी...! वह जो रोटी लाया था वह भी पानी में चली गई...!
कुत्ता किसी तरह तैर कर नदी के किनारे आया। वह बुरी तरह पानी में भींग गया था। जैसे ही वह पानी से निकला उसने देखा पूरे गाँव के लोग और पशु-पक्षी किनारे पर खड़े उस पर हँस रहे हैं। कुत्ता अपनी करनी और बेवकूफी पर बहुत शर्मिंदा हुआ। उसने सबसे अपने ख़राब बरताव के लिए क्षमा माँगी। पूरे गाँव के लोगों ने उसे माफ कर दिया क्योंकि उसे अपनी करनी की सजा मिल गयी थी। उसने प्रण किया कि अब वह कभी लालच नहीं करेगा और सबके साथ मिल-जुल कर रहेगा। जो कुछ भी होगा सबके साथ मिल-बाँट कर खायेगा।
तबसे कुत्ता सबका प्यारा हो गया और वह घर,खेत -खलिहानों की देख-भाल करने लगा।
दिवा दी डुमडुम !
नदी के किनारे एक गाँव था । छोटा-सा, सुंदर-सा। वहाँ सभी लोग मिल-जुल कर रहते थे। जो कुछ भी होता मिल-बाँट कर खा-पी लेते थे। अपने पालतू जानवरों- गाय, बैल ,घोड़े, कुत्ते-सभी का गाँव वाले बहुत ख़याल रखते थे। जानवरों को वे समय से दाना -पानी देते थे। उनकी साफ -सफाई का पूरा ध्यान रखते थे। बचा हुआ खाना और अन्न का दाना वो लोग चिड़ियों को डाल देते थे । चिडियाँ उनके खेत में पैदा होने वाला अनाज कभी बरबाद नहीं करती थीं। उस गाँव में रहने वाले ग्रामवासी और पशु, पक्षी सभी बहुत खुश थे। वे आपस में खूब हिल-मिल कर रहते थे।
उसी गाँव में एक कुत्ता रहता था। वह बहुत लालची था। पेट भरा होने पर भी वह हमेशा दूसरों के खाने पर नज़र गड़ाए रहता था। कभी छोटे बच्चों के हाथ से रोटी छीन कर भाग जाता तो कभी किसी के घर में घुस कर खाना चुरा कर दूर कहीं जमीन में दबा कर रख आता था। कभी-कभी तो वह दूसरे पशु-पक्षियों और अपने साथियों से भी झगड़ा करने लगता था। उनका खाना छीन लेता था। सभी जानवर,चिडियाँ और गाँव वाले कुत्ते की इस गन्दी आदत से परेशान रहते थे। सभी लोग कुत्ते को सबक सिखाना चाहते थे और मौके की तलाश में थे।
एक दिन की बात है कुत्ता किसी के घर में घुस कर एक रोटी ले कर भागा। घर के मालिक ने उसे देख लिया वह उसके पीछे दौड़ा। उसने गाँव के सभी लोगों और पशु-पक्षियों को साथ लिया और उसी ओर चल दिया जिधर कुत्ता गया था। कुत्ता तेजी से नदी पर बने पुल की ओर जा रहा था । गाँव के लोग काफी पीछे थे। अब कुत्ता पुल पर पहुँच गया था। उसने अपने मुँह में रोटी दबा रखा था। पुल के नीचे नदी बह रही थी। कुत्ते ने नदी में झाँक कर देखा और ठिठक कर रुक गया - "यह क्या...? नदी में यह दूसरा कुत्ता कौन है ? इसके पास भी रोटी है...! अभी यह रोटी मैं उससे छीन लेता हूँ। " यह सोच कर कुत्ता गुर्राया। दूसरा कुत्ता भी गुर्राया। अब कुत्ता दूसरे कुत्ते पर जैसे ही भौंका उसके मुँह में दबी रोटी नदी के पानी में जा गिरी। कुत्ता दूसरे कुत्ते से रोटी छीनने के लिए नदी में कूद गया। पर यह क्या ? वहाँ तो कोई कुत्ता था ही नहीं ! यहाँ तो पानी ही पानी है...! तो यह उसकी परछाईं थी...! वह जो रोटी लाया था वह भी पानी में चली गई...!
कुत्ता किसी तरह तैर कर नदी के किनारे आया। वह बुरी तरह पानी में भींग गया था। जैसे ही वह पानी से निकला उसने देखा पूरे गाँव के लोग और पशु-पक्षी किनारे पर खड़े उस पर हँस रहे हैं। कुत्ता अपनी करनी और बेवकूफी पर बहुत शर्मिंदा हुआ। उसने सबसे अपने ख़राब बरताव के लिए क्षमा माँगी। पूरे गाँव के लोगों ने उसे माफ कर दिया क्योंकि उसे अपनी करनी की सजा मिल गयी थी। उसने प्रण किया कि अब वह कभी लालच नहीं करेगा और सबके साथ मिल-जुल कर रहेगा। जो कुछ भी होगा सबके साथ मिल-बाँट कर खायेगा।
तबसे कुत्ता सबका प्यारा हो गया और वह घर,खेत -खलिहानों की देख-भाल करने लगा।
Lalach karana buri bala hai
लालच करना बुरी बला है ... 1
दिवा !
दिवा !
आज मैं तुम्हें एक लालची कुत्ते की कहानी सुनाऊँगी। पर कहानी सुनाने से पहले मैं अपनी प्यारी दीबू से कुछ बातें तो कर लूँ ...है न ? आज हमने तुम्हें इन्टरनेट पर देखा। दिवा अब तुम हमारी बातें समझने लगी हो। तुम्हारी प्यारी बातें, तुम्हारी मोहक मुस्कान, तुम्हारे बालसुलभ कारनामे हमें खुशियों से सराबोर कर देते हैं। डुमडुम! तुम्हारे दादाजी, चाचाजी, चाचीजी और मैं-तुम्हारी दादीजी- यहाँ अमेरिका में तुम्हें बहुत याद करते हैं। ऐसा लगता है जैसे हम किसी अनमोल अनुभव से दूर हैं। हम हर समय तुम्हारे साथ रह कर तुम्हारी हर बात का अनुभव करना चाहते हैं पर क्या करें, विवश हैं। इन्टरनेट,गूगल,स्काईप-जैसे माध्यमों के हम आभारी हैं जिनके कारण हम दूर रह कर भी एक दूसरे के पास हैं.
दिवा यह कहानी मम्मा तुम्हें पढ़ कर सुनाएगी और यह भी बताएगी कि "लालच करना बुरी बाला है बच्चों छोड़ो तभी भला है . " तो चलो तैयार हो जाओ लालची कुत्ते कि कहानी सुनाने के लिए...
देखो लालची कुत्ते का क्या हाल हुआ...?
दिवा यह कहानी मम्मा तुम्हें पढ़ कर सुनाएगी और यह भी बताएगी कि "लालच करना बुरी बाला है बच्चों छोड़ो तभी भला है . " तो चलो तैयार हो जाओ लालची कुत्ते कि कहानी सुनाने के लिए...
देखो लालची कुत्ते का क्या हाल हुआ...?
Monday, October 5, 2009
budhiman kouva -2
बुद्धिमान कौवा -2
डुमडुम रानी...! कितना बुद्धिमान था कौवा...!! है न...!!!
डुमडुम !
प्यासे कौवे को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे कि पा
क्या कर रही हो? आओ देखें प्यासे कौवे का क्या हुआ ? उसे पानी मिला या नहीं...!
कौवे ने पानी का बरतन देखा और खुशी से काँव-काँव करने लगा। वह पानी के बरतन के पास आ कर बैठ गया। उसने अपनी चोंच बरतन में डाल कर पानी पीना चाहा पर यह क्या...? उसकी चोंच तो पानी तक पहुँच ही नहीं रही थी ! उसने फिर प्रयास किया...पर पानी तो बहुत नीचे था ! कौवे ने बरतन में चोंच मार कर उसे गिराने की कोशिश की ...पर बरतन बहुत भारी था ...हिला भी नहीं ! उसने चोंच मार कर बरतन को तोड़ने की कोशिश की... पर बरतन नहीं टूटा... बरतन बहुत था... उसमें खरोंच तक नहीं आयी ! कौवा उड़ कर पानी के बरतन पर बैठ गया। उसने बरतन में झुक कर पानी तक पहुँचने की कोशिश की पर उसकी चोंच पानी को छू भी नहीं सकी।
प्यासे कौवे को समझ नही आ रहा था की वो क्या करे की पानी तक उसकी चोंच पहुँच जाए और वह पानी पी कर अपनी प्यास बुझा सके...! किसी कारगर उपाय की तलाश में कौवा इधर-उधर देख रहा था तभी उसे पास ही में कुछ कंकड़ के टुकड़े दिखायी पड़े। चतुर कौवे के दिमाग में तुंरत एक उपाय आया ... ''यदि मेरी चोंच पानी तक नहीं पहुँच सकती है तो बात नहीं...पानी तो मेरी चोंच तक आ ही सकती है..!''
वह खुशी से झूम उठा।
कौवा अपनी सारी थकान भूल गया और उड़ कर कंकड़ के टुकडों के पास पहुँच गया। उसने कंकड़ का एक छोटा -सा टुकड़ा अपनी चोंच में दबाया और पानी के बरतन के पास जा कर उसमें गिरा दिया। कौवा फिर उड़ कर एक और कंकड़ लाया और उसने उस कंकड़ को भी बरतन में डाल दिया। इसी तरह वो बारबार कंकड़ के छोटे-छोटे टुकड़े अपनी चोंच से उठा -उठा कर बरतन में डालता गया। जितनी बार कौवा बरतन में कंकड़ का टुकड़ा डालता था पानी थोड़ा और ऊपर आ जाता था। अपना उपाय सफल होते देख कर कौवा बहुत खुश था। कौवा और उत्साह से कंकड़ ला-ला कर बरतन में डालने लगा।
जानती हो दिवा ! कौवे की युक्ति काम कर गयी और देखते ही देखते पानी बरतन के ऊपर तक आ गया। कौवे ने जी भर कर पानी पीया और अपनी प्यास बुझायी। पानी पीने के बाद कौवे ने गर्व से चारों ओर गर्दन घुमा कर देखा और एक विजयी की तरह काँव-काँव ... का नारा लगा कर आसमान में उड़ गया।
डुमडुम रानी...! कितना बुद्धिमान था कौवा...!! है न...!!!
बुद्धिमान कौवा...!
जो संकट की घड़ी में भी घबरया नहीं...!
जिसने अपनी समस्या का हल अपने दिमाग से ढूँढ ही लिया....!!!
Saturday, October 3, 2009
budhiman kouva -1
बुद्धिमान कौवा -1
दिवा !
आज मैं तुमको एक ऐसे कौवे की कहानी सुनाने जा रही हूँ जो बहुत दूर से उड़ते-उड़ते आ रहा था। वह बहुत गया था। उसे बहुत तेज प्यास लगी थी। उसने दूर-दूर तक उड़ -उड़ कर पानी की खोज की पर कहीं भी पानी की एक बूँद भी नहीं दीख रही थी। कौवा प्यास से बेहाल था। कौवे को लग रहा था कि अब वह उड़ नहीं पायेगा और प्यास के मारे मर जाएगा। उसके पंख उसका साथ नहीं दे रहे थे। उसका गला पानी के बिना सूखा जा रहा था।
प्यास से बेहाल कौवा थक कर जमीन पर बैठ गया। कहाँ पानी ढूँढे... वह समझ नहीं पा रहा था। उसके आँखों के सामने अँधेरा छाने लगा। पर कौवे ने हार नहीं मानी। वह अपनी पूरी ताकत बटोर कर फिर से उड़ा। उसने अपनी तेज आँखें इधर-उधर दौड़ायीं। कुछ दूरी पर उसे पानी से भरा एक बरतन दिखायी दिया। कौवा खुशी के मारे काँव-काँव चिल्लाने लगा। वह तेजी से बरतन के पास पानी पीने आया।
पर क्या कौवा पानी पी पाया ?उसकी प्यास बुझ पायी ? यह मैं तुमको चाय पीने के बाद बताऊँगी।
समझी दिवा !
समझी दिवा !
Friday, October 2, 2009
दिवा, दादी और महात्मा गांधी
दिवा !कैसी हो ? आज कितने दिनों के बाद तुमसे बात कर रही हूँ ! जानती हो दिवा ! आज दो अक्टूबर है। आज हमारे राष्ट्रपिता महत्मा गांधी का जन्मदिन है। गांधीजी को पूरे देश के लोग प्यार से बापू कहते हैं। बापू का मतलब होता है पिता इसीलिए गांधीजी को पूरे राष्ट्र का पिता कहा जाता है।
गांधीजी ने पूरे संसार को सत्य और अहिंसा का रास्ता दिखाया। उन्होंने हमें सत्य और अहिंसा के सहारे अपने अधिकार और अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ना सिखाया। दिवा ! सत्य का मतलब होता है -जो सही हो ,जिससे किसी का नुकसान न हो ,जो अच्छा हो और अहिंसा का मतलब होता है किसी को कष्ट या दुःख न पहुँचाना। गांधीजी के बताये रस्ते पर चलकर ही हमारा देश स्वतंत्र हुआ।
दिवा ! अभी तुम इन बातों को जानने और समझाने के लिए बहुत छोटी हो। जब तुम थोड़ी बड़ी हो जाओगी तो तुम देश, स्वतंत्रता, सत्य, अहिंसा, प्रेम, असहयोग, आन्दोलन, देशप्रेम और गांधी का अर्थ समझने लगोगी।
मेरी प्यारी नन्ही -सी डुमडुम ! तब तुम जान जाओगी कि गांधी किसी व्यक्ति का नाम ही नहीं गांधी हमारे देश की आत्मा है, हमारे देश की संस्कृति है; गांधी हमारा धर्म है, हमारा गर्व है; गांधी हमारी शक्ति है, हमारी भक्ति है और गांधी महात्मा ही नहीं, विश्वात्मा हैं। तब तुम गर्व से अपना सर ऊँचा कर कहोगी- ''मैं एक भारतीय हूँ। मैं एक स्वतंत्र देश की नागरिक हूँ। मुझे गर्व है कि मैंने राम, कृष्ण, बुद्ध और गांधी के देश में जन्म लिया है। ''
अच्छा दिवा रानी ! बाकी बातें कल करेंगे ...आज के लिए इतना काफी है।
Friday, August 28, 2009
Mela ghoomane ka apana maza hai, Hai na mamma...?
पापा मुझको पैसे दे दो आज मैं मेले जाऊँगी
तुमको औ' मम्मा को भी मैं अपने संग ले जाऊँगी
डेनमार्क के मेले में मैं पिज्जा- बर्गर खाऊँगी
झू-झू झूलों में झूलूँगी , मम्मा को भी झुलाऊँगी
पापा मैं कितनी छोटी हूँ चल-चल कर थक जाऊँगी
कन्धों पर बिठला लो अपने मैं दुनिया दिखलाऊँगी
Friday, August 21, 2009
Sunday, August 16, 2009
चकित दिवा...!
आसमान में इतने बादल, सागर में इतना सारा जल !
कौन इन्हें देता है ला कर, बतलाओ माँ मुझे सोच कर !
अगर नहीं तुम बतलाओगी , पूछूँगी पापा से जा कर !
Saturday, August 15, 2009
अटलांटिक महासागर की सैर का मज़ा
मम्मी-पापा के संग-संग तुम,
देश-देश में घूम रही हो ...!
सागर-सागर झूम रही हो ।
स्वतंत्रता-दिवस की शुभकामनाएँ
भारत हमारा देश
हम मनु की संतान अमर हैं देश हमारा भारत है।
सिंहों से हम खेला करते नहीं गर्जना सुन कर डरते
मुख में हाथ डाल शेरों के उनके दाँत गिना करते हैं
हम शकुन्तलापुत्र भरत हैं देश हमारा भारत है।
हम सदैव हैं आगे बढ़ते पीछे मुड़ कर नहीं देखते
जो हमको आँखे दिखलाते उनके शीश कटा करते हैं
हम धरती के पुत्र निडर हैं देश हमारा भारत है।
***********
Thursday, August 13, 2009
Tuesday, August 4, 2009
कछुआ और खरगोश -2
एक था कछुआ और एक था खरगोश ! दोनों एक जंगल में रहते थे।
दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे।
खरगोश हरदम उछलता-कूदता रहता था। वह बहुत तेज और बुद्धिमान था। जंगल के सभी जानवर उससे सलाह ले कर ही सब काम करते थे।
कछुआ बहुत सीधा- सादा था और हर समय अपनी खोल में दुबका रहता था। वह अपना हर काम खरगोश से सलाह लेकर करता था।
खरगोश कछुआ को मीठे-मीठे गाजर खिलाता था। कछुआ खरगोश को अपनी पीठ पर बैठा कर नदी में घुमाता था।
एक बार कछुए और खरगोश मैं बहस छिड़ गयी कि कौन तेज दौड़ता है ?उनकी बहस ख़तम ही नहीं हो रही थी । आस-पास के और जानवर और चिड़ियाँ सभी वहाँ आ गए। सबने उनकी बात सुनी।
सब जानवर जानते थे कि खरगोश बहु तेज दौड़ता है पर कछुआ अपनी जिद पर अड़ा रहा। उसने कहा -"मैं तेज दौड़ता हूँ ।" अंत में सबने कहा कि जंगल के अंत में बहने वाली नदी के किनारे वाले बरगद के पेड़ के पास , जो सूरज डूबने से पहले पहुँचेगा वही जीतेगा।
खरगोश और कछुए कि दौड़ शुरू हो गयी। दोनों दौड़ने लगे खरगोश बहुत आगे निकल गया।वह बहुत खुश था कि वह ही जीतेगा। धीमे-धीमे रेंगने वाला कछुआ भला दौड़ने में उससे कैसे जीतेगा ?
रास्ते में खरगोश को एक पीपल का पेड़ दिखा। खरगोश ने सोचा , "कछुआ तो अभी बहुत पीछे है। चलो थोड़ा सुस्ता लेता हूँ। " वह पीपल के पेड़ की छाया में लेट गया। ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी। खरगोश को नींद आ गयी।
कछुआ धीमे-धीमे दौड़ता ही रहा। उसे धूप लग रही थी। उसे प्यास भी लग रही थी पर वह रुका नहीं...दौड़ता ही रहा। वह तब तक दौड़ता रहा...दौड़ता ही रहा... जब तक कि बरगद का पेड़ नहीं आ गया
शाम होने वाली थी , तब जाकर खरगोश की नींद खुली। वह खूब तेज दौड़ा। उसने सोचा-"कछुआ तो अभी बहुत दूर ही होगा...वह भला कैसे तेज दौड़ पायेगा ? सूरज डूबने वाला था। उसने बहुत तेज दौड़ लगाई...उसे जीतना जो था ! सूरज डूबने से पहले ही वह बरगद के पेड़ तक पहुँच गया। पर यह क्या ...? कछुआ तो जंगल के पार...नदीके किनारे ...बरगद के पेड़ के नीचे आराम से बैठा हँस रहा था...!
खरगोश रेस हार गया ...! कछुआ जीत गया...!! उसे जीतना ही था...!!!
जंगल के सभी जानवर...सभी चिड़ियाँ ...आज भी हैरान हैं -"आख़िर खरगोश दौड़ में हार कैसे गया...?
दिवा दी डुमडुम तुम ही बताओ कछुआ क्यों जीत गया...?
दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे।
खरगोश हरदम उछलता-कूदता रहता था। वह बहुत तेज और बुद्धिमान था। जंगल के सभी जानवर उससे सलाह ले कर ही सब काम करते थे।
कछुआ बहुत सीधा- सादा था और हर समय अपनी खोल में दुबका रहता था। वह अपना हर काम खरगोश से सलाह लेकर करता था।
खरगोश कछुआ को मीठे-मीठे गाजर खिलाता था। कछुआ खरगोश को अपनी पीठ पर बैठा कर नदी में घुमाता था।
एक बार कछुए और खरगोश मैं बहस छिड़ गयी कि कौन तेज दौड़ता है ?उनकी बहस ख़तम ही नहीं हो रही थी । आस-पास के और जानवर और चिड़ियाँ सभी वहाँ आ गए। सबने उनकी बात सुनी।
सब जानवर जानते थे कि खरगोश बहु तेज दौड़ता है पर कछुआ अपनी जिद पर अड़ा रहा। उसने कहा -"मैं तेज दौड़ता हूँ ।" अंत में सबने कहा कि जंगल के अंत में बहने वाली नदी के किनारे वाले बरगद के पेड़ के पास , जो सूरज डूबने से पहले पहुँचेगा वही जीतेगा।
खरगोश और कछुए कि दौड़ शुरू हो गयी। दोनों दौड़ने लगे खरगोश बहुत आगे निकल गया।वह बहुत खुश था कि वह ही जीतेगा। धीमे-धीमे रेंगने वाला कछुआ भला दौड़ने में उससे कैसे जीतेगा ?
रास्ते में खरगोश को एक पीपल का पेड़ दिखा। खरगोश ने सोचा , "कछुआ तो अभी बहुत पीछे है। चलो थोड़ा सुस्ता लेता हूँ। " वह पीपल के पेड़ की छाया में लेट गया। ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी। खरगोश को नींद आ गयी।
कछुआ धीमे-धीमे दौड़ता ही रहा। उसे धूप लग रही थी। उसे प्यास भी लग रही थी पर वह रुका नहीं...दौड़ता ही रहा। वह तब तक दौड़ता रहा...दौड़ता ही रहा... जब तक कि बरगद का पेड़ नहीं आ गया
शाम होने वाली थी , तब जाकर खरगोश की नींद खुली। वह खूब तेज दौड़ा। उसने सोचा-"कछुआ तो अभी बहुत दूर ही होगा...वह भला कैसे तेज दौड़ पायेगा ? सूरज डूबने वाला था। उसने बहुत तेज दौड़ लगाई...उसे जीतना जो था ! सूरज डूबने से पहले ही वह बरगद के पेड़ तक पहुँच गया। पर यह क्या ...? कछुआ तो जंगल के पार...नदीके किनारे ...बरगद के पेड़ के नीचे आराम से बैठा हँस रहा था...!
खरगोश रेस हार गया ...! कछुआ जीत गया...!! उसे जीतना ही था...!!!
जंगल के सभी जानवर...सभी चिड़ियाँ ...आज भी हैरान हैं -"आख़िर खरगोश दौड़ में हार कैसे गया...?
दिवा दी डुमडुम तुम ही बताओ कछुआ क्यों जीत गया...?
कछुआ और ख़रगोश -1
दिवा दी डुमडुम !
क्या हाल-चाल है ?आजकल क्या-क्या कर रही हो ? अब तो तुमने चलना सीख लिया है और भाग-दौड़ करती रहती हो।
डुमडुम !
तुम मम्मा के साथ घर के काम में मदद तो करती हो पर कहीं सब उलट-पुलट करके मम्मा का काम बढ़ाती तो नहीं ?
मम्मा कहती है दिवा आजकल बहुत तेज दौड़ती है और मम्मा को अपने पीछे-पीछे दौड़ाती रहती है।
तुम्हारे तेज दौड़ने के नाम से मुझे 'कछुआ खरगोश' की कहानी याद आ गयी जिसे मैंने अपने बचपन में अपनी माँ से सुना था और आज तुम्हारी दादीमाँ ,ब्लॉग में ,तुम्हारे लिए लिख रही हैं।
तो शुरू करते हैं बहुत तेज दौड़ने वाले खरगोश और धीमे-धीमे सरकने वाले कछुए की कहानी ...!
देखें कहानी में है क्या...?
क्या हाल-चाल है ?आजकल क्या-क्या कर रही हो ? अब तो तुमने चलना सीख लिया है और भाग-दौड़ करती रहती हो।
डुमडुम !
तुम मम्मा के साथ घर के काम में मदद तो करती हो पर कहीं सब उलट-पुलट करके मम्मा का काम बढ़ाती तो नहीं ?
मम्मा कहती है दिवा आजकल बहुत तेज दौड़ती है और मम्मा को अपने पीछे-पीछे दौड़ाती रहती है।
तुम्हारे तेज दौड़ने के नाम से मुझे 'कछुआ खरगोश' की कहानी याद आ गयी जिसे मैंने अपने बचपन में अपनी माँ से सुना था और आज तुम्हारी दादीमाँ ,ब्लॉग में ,तुम्हारे लिए लिख रही हैं।
तो शुरू करते हैं बहुत तेज दौड़ने वाले खरगोश और धीमे-धीमे सरकने वाले कछुए की कहानी ...!
देखें कहानी में है क्या...?
Monday, August 3, 2009
Sunday, July 26, 2009
Saturday, July 25, 2009
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