Sunday, July 26, 2009

Kal phir milenge...!


Early to bed...and


Wow ...! Mom...! Aaam...!!!



Where is my dinner...?


Ab to bhookh lag gayee...!


Sooo tired...!


Bahut khel chuke...!


Ab bas...ghar jaana hai...


Abhi aur ...mamma...!


Dekha mamma...!


Kitana achchha ghoda hai...!


Kitana achchha ghoda hai...!


Ek bar aur...papa...!


Aaha...kitana maja aa raha hai...!


papa ke saath ghoomane ka maza


Saturday, July 25, 2009

Papa...?


Waiting for papa


Time to rest


All is ok


I am helping my mamma...!


I am busy...


Sooo many works to do...!


Come on mamma give my breakfast...!


Prayer is over


I am ready...!


Have taken bath...!


I want to take a bath...!


Wednesday, July 22, 2009

where is mamma...?


I am busy in Morning Exercise....!!

Posted by Picasa

Goodmorning...mamma-papa...!

Posted by Picasa

Wednesday, July 15, 2009

दो झगड़ालू बिल्लियाँ

दिवा दी डुमडुम ...!

आज मैं तुमको दो बिल्लियों की कहानी सुनाऊँगी जो एक रोटी के लिए आपस में झगड़ पड़ीं। यह कहानी हमारी अम्माजी हमें सुनाया करती थीं। आज मैं अपने ब्लॉग में तुम्हारे लिए लिख रही हूँ। तुमको यह कहानी तुम्हारी मम्मा तुमको पढ़ कर सुनायेंगी। तो आओ देखते हैं कि उन बिल्लियों का क्या हुआ...?
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दो झगड़ालू बिल्लियाँ ...!
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एक दिन दो बिल्लियाँ कहीं घूमने जा रही थीं। रास्ते में एक रोटी पड़ी थी। दोनों बिल्लियाँ एक साथ रोटी पर झपट पड़ीं।

पहली बिल्ली बोली ..."यह मेरी रोटी है। "
दूसरी बिल्ली गुर्रायी "रोटी मेरी है।"

दोनों बिल्लियाँ आपस में झगड़ा करने लगीं।


एक बन्दर वहीं पास में एक पेड़ पर बैठा था।
वह बहुत देर से बिल्लियों को आपस में झगड़ा करते हुए देख रहा था।
बन्दर ने बिल्लियों से पूछा..."तुम दोनों इतनी देर से क्यों झगड़ा कर रही हो ?"
पहली बिल्ली बोली... "यह रोटी मेरी है... इसकी नहीं...!"
दूसरी बिल्ली चिल्लाई ... "इस रोटी को पहले मैंने देखा... रोटी मेरी है। "

बन्दर बोला... "इसमें झगड़ा करने की क्या बात है ? लाओ... मैं रोटी के दो टुकड़े कर देता हूँ ... !
तुम दोनों एक-एक टुकड़ा ले लो।"
दोनों बिल्लियों ने बन्दर की बात मान ली।


बन्दर पेड़ से नीचे आया। उसने बिल्लियों से रोटी लिया और उसके दो हिस्से कर दिए।
दोनों बिल्लियों को उसने एक-एक टुकड़ा दे दिया।

पहली बोली... "मैं बड़ा टुकड़ा लूँगी!"
दूसरी बोली... "मैं... लूँगी...!"
बन्दर ने कहा... "अच्छा...! रुको...!! तुम दोनों लड़ाई मत करो...!!!
मैं एक तराजू लाता हूँ और रोटी को तौल कर उसके बराबर-बराबर भाग कर देता हूँ।"
बिल्लियाँ मान गयीं।

बन्दर कहीं से एक तराजू ले आया । उसने बिल्लियों से रोटी का दोनों टुकड़ा लिया और तराजू के दोनों पलड़ों पर रोटी का एक-एक टुकड़ा रख दिया।
अब जिधर रोटी का बड़ा हिस्सा था वह नीचे हो गया। बन्दर ने भार बराबर करने के लिए उसमें से एक कौर रोटी खा लिया... !
अब दूसरी ओर का पलड़ा झुक गया...!

बन्दर ने उधर के रोटी से भी एक कौर खा लिया।
इस तरह बन्दर बारी-बारी से दोनों पलड़ों पर रखी रोटी के टुकड़ों को खाता गया..!

दोनों बिल्लियाँ बन्दर का मुँह ताकती रहीं कि कब बन्दर उनको रोटी का बराबर-बराबर हिस्सा देगा ?
पर बन्दर पूरी रोटी खा गया... !
बाकी बचा एक तराजू के पलड़े पर रखा रोटी का एक छोटा-सा अन्तिम टुकड़ा !

अब दोनों बिल्लियों से न रहा गया...! वे बन्दर पर झपट पड़ीं... "बस...बस...! हमारी रोटी हमें दे दो ...!
हम ख़ुद ही आपस में बाँट लेंगे...! तुम रहने दो...!"

बन्दर बोला... "और मेरा मेहनताना ...? वो कौन देगा ?"

बन्दर रोटी का अन्तिम बचा टुकड़ा ले कर पेड़ पर चढ़ गया और बोला... "दो बिल्लियों की लड़ाई में फायदा हुआ मेरा...! अब मैं तो रोटी खाऊँ... !! रोटी खाऊँ... !!!"

"खाऊँ...! खाऊँ...!! खाऊँ....!!!''


बिल्लियाँ म्याऊँ-म्याऊँ करती रह गयीं ...! उनको रोटी का एक टुकड़ा भी नहीं मिला।

Friday, July 10, 2009

एक था कौआ...एक थी चिड़िया...


एक था कौवा...एक थी चिड़िया...
कौए का घर था मिट्टी का ...
चिड़िया का घर था नमक का ...
एक दिन कौए के घर नमक ख़तम हो गया।
कौवा गया चिड़िया के घर ...बोला...
"चिड़ी-चिड़ी !थोड़ा -सा नमक दे दो। "
चिड़िया बोली...
"तेरे लिए मैं अपना घर तोडूँ क्या ?
जा-जा ...न मैं लेऊँ न मैं देऊं। "
कौआ चला गया।
फिर एक दिन बहुत तेज पानी बरसा।
चिड़िया का घर था नमक का ... गल गया। कौवे का घर था मिट्टी का ...नहीं गला।
चिड़िया आयी कौवे के घर...बोली..."कौवा -कौवा अपने घर में थोड़ी-सी जगह दे दो।"
कौवा बोला ..."न तो मैं लेऊँ न तो मैं देऊं।"
चिड़िया चुप हो गयी। चिड़िया पानी में भींग रही थी।
कौवे को उस पर दया आ गयी। कौवे ने चिड़िया को अपने घर में जगह दे दी।
चिड़िया और कौवा साथ-साथ रहने लगे।
एक दिन चिड़िया ने कौवे से कहा ..."चलो दोनों मिल कर खिचड़ी बनायें।" कौवा मान गया।
कौवा लाया दाल का दाना .... चिड़िया लायी चावल का दाना ....!
दोनों ने मिल कर खिचड़ी पकायी।
चिड़िया ने कौवे से कहा ..."चलो पहले नहा आयें फिर खाना खायें।"
कौवा चला गया नहाने ...चिड़िया छुप कर बैठी रही।
चिड़िया ने अपनी खिचड़ी खा ली ...फिर कौवे की खिचड़ी भी खा ली।
खिचड़ी खा कर चिड़िया फुर्र से उड़ गयी ...!
कौवा लौट कर आया तो वहाँ न चिड़िया थी न खिचड़ी...!
तब से कौवा चिड़िया को खोज रहा है ...कहाँ ...हो...?...कहाँ...हो...?
काँ...हो...?काँ...हो...?...काँ...व...?काँ...व?...काँव...?...काँव...?



दिवा दी दुमदुम कहाँ गयी हो ?

मेरी प्यारी नन्ही-सी गुड़िया दिवा !
अब तुम एक साल की हो गयी और काफी समझदार भी ... है न ? जब तुम तीन-चार महीने की थी तब से ही तुमको पापा से कैसियो सुनना, उसे अपने नन्हे हाथों से बजाने की कोशिश करना, दादाजी से शेर, भालू, गब्बरसिंह और कालिया की कहानी सुनना बहुत अच्छा लगता था। मम्मा की लोरियाँ और दादी की कविताएँ सुन कर तुम खूब खुश होती थी। चाचाजी और चाचीजी को ऑनलाइन देख कर तुम उन्हें पहचान लेती थी और तुम्हारी प्यारी-सी मुस्कान हम सबको निहाल कर देती थी। बुआजी से फ़ोन पर गाना और ''दूध-दूध पियो ग्लास-फुल दूध" सुनकर तुम किलकारियाँ मार कर हँसा करती थी।
इस समय तुम डेनमार्क में मम्मा-पापा के साथ हो और मैं तुम्हारे चाचा-चाची के पास अमेरिका में इसलिए मैं तुम्हारे पास बैठ कर तुमसे बातें नहीं कर पा रही हूँ। पर दिवा मैं ब्लॉग में तुम्हारे लिए अच्छी-अच्छी कहानियाँ और कविताएँ लिख सकती हूँ जिनको सुन कर तुम बहुत खुश होगी। आज मैं वहीं तुम्हारे लिए एक कहानी लिख रही हूँ जिसे मैंने अपनी दादी से सुना था। यह कहानी एक चिड़िया और एक कौए की है। मेरी सोनू ! दुमदुम !! दिवा!!! मम्मा-पापा तुमको यह कहानी सुनायेंगे और फ़िर हमें बताएँगे कि हमारी राजकुमारी यह कहानी सुन कर कितनी खुश हुई ! तो चलो अब सुनाती हूँ तुमको एक चिड़िया और एक कौए की कहानी ......!

Wednesday, July 8, 2009

DIVA !

I love Diva ! Diva... my very first grandaughter !!!

So small! So cute!! So beautiful!!!

We have celebrated her first birthday in a global manner on June 25th. Diva was in Denmark with her loving mama and papa, we, her dada dadi, in America with Diva's loving chacha and chachi, her affectionate bua and fufa in Japan, and her nana nani, mausa, mausi in India. We all celebrated her birthday in our own style but we all were with her online. This magnificient event inspired me to create this blog for Diva.


Diva... The light of heaven!
Diva... The gift of God to us!!

'Diva' is a heartiest gift from a loving grandmother to a dearest granddaughter, who is the most charming girl in the whole world to me!

My Diva!
My Dumdum!!
My Diva De Dumdum!!!


Friday, July 3, 2009

The Light of Heaven