Friday, August 28, 2009

Mela ghoomane ka apana maza hai, Hai na mamma...?

पापा मुझको पैसे दे दो आज मैं मेले जाऊँगी
तुमको औ' मम्मा को भी मैं अपने संग ले जाऊँगी
डेनमार्क के मेले में मैं पिज्जा- बर्गर खाऊँगी
झू-झू झूलों में झूलूँगी , मम्मा को भी झुलाऊँगी
पापा मैं कितनी छोटी हूँ चल-चल कर थक जाऊँगी
कन्धों पर बिठला लो अपने मैं दुनिया दिखलाऊँगी

Wow papa...! wonderful...!!

mamma don't fear...!

ना ना मम्मा तुम मत डरना मैं हूँ साथ तुम्हारे
भालू आये , बिल्ली आये, चाहे बन्दर आयें
हाथी और शेर भी आकर कितना तुम्हें डरायें
प्यारी मम्मा तुम मत डरना मैं हूँ साथ तुम्हारे
एक बार जब गुर्राऊँगी , मम्मा डर जायेंगे सारे

Sunday, August 16, 2009

चकित दिवा...!

नीचे सागर ऊपर अम्बर !कितना प्यारा कितना सुंदर !
आसमान में इतने बादल, सागर में इतना सारा जल !
कौन इन्हें देता है ला कर, बतलाओ माँ मुझे सोच कर !
अगर नहीं तुम बतलाओगी , पूछूँगी पापा से जा कर !

Saturday, August 15, 2009

अटलांटिक महासागर की सैर का मज़ा

नन्ही-मुन्नी दिवा दी डुमडुम !
मम्मी-पापा के संग-संग तुम,
देश-देश में घूम रही हो ...!
सागर-सागर झूम रही हो ।

स्वतंत्रता-दिवस की शुभकामनाएँ

।। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।।
भारत हमारा देश

हम मनु की संतान अमर हैं देश हमारा भारत है।
सिंहों से हम खेला करते नहीं गर्जना सुन कर डरते
मुख में हाथ डाल शेरों के उनके दाँत गिना करते हैं
हम शकुन्तलापुत्र भरत हैं देश हमारा भारत है।
हम सदैव हैं आगे बढ़ते पीछे मुड़ कर नहीं देखते
जो हमको आँखे दिखलाते उनके शीश कटा करते हैं
हम धरती के पुत्र निडर हैं देश हमारा भारत है।
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Tuesday, August 4, 2009

कछुआ और खरगोश -2

एक था कछुआ और एक था खरगोश ! दोनों एक जंगल में रहते थे।
दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे।
खरगोश हरदम उछलता-कूदता रहता था। वह बहुत तेज और बुद्धिमान था। जंगल के सभी जानवर उससे सलाह ले कर ही सब काम करते थे।
कछुआ बहुत सीधा- सादा था और हर समय अपनी खोल में दुबका रहता था। वह अपना हर काम खरगोश से सलाह लेकर करता था।
खरगोश कछुआ को मीठे-मीठे गाजर खिलाता था। कछुआ खरगोश को अपनी पीठ पर बैठा कर नदी में घुमाता था।
एक बार कछुए और खरगोश मैं बहस छिड़ गयी कि कौन तेज दौड़ता है ?उनकी बहस ख़तम ही नहीं हो रही थी । आस-पास के और जानवर और चिड़ियाँ सभी वहाँ आ गए। सबने उनकी बात सुनी।
सब जानवर जानते थे कि खरगोश बहु तेज दौड़ता है पर कछुआ अपनी जिद पर अड़ा रहा। उसने कहा -"मैं तेज दौड़ता हूँ ।" अंत में सबने कहा कि जंगल के अंत में बहने वाली नदी के किनारे वाले बरगद के पेड़ के पास , जो सूरज डूबने से पहले पहुँचेगा वही जीतेगा।
खरगोश और कछुए कि दौड़ शुरू हो गयी। दोनों दौड़ने लगे खरगोश बहुत आगे निकल गया।वह बहुत खुश था कि वह ही जीतेगा। धीमे-धीमे रेंगने वाला कछुआ भला दौड़ने में उससे कैसे जीतेगा ?
रास्ते में खरगोश को एक पीपल का पेड़ दिखा। खरगोश ने सोचा , "कछुआ तो अभी बहुत पीछे है। चलो थोड़ा सुस्ता लेता हूँ। " वह पीपल के पेड़ की छाया में लेट गया। ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी। खरगोश को नींद आ गयी।
कछुआ धीमे-धीमे दौड़ता ही रहा। उसे धूप लग रही थी। उसे प्यास भी लग रही थी पर वह रुका नहीं...दौड़ता ही रहा। वह तब तक दौड़ता रहा...दौड़ता ही रहा... जब तक कि बरगद का पेड़ नहीं आ गया
शाम होने वाली थी , तब जाकर खरगोश की नींद खुली। वह खूब तेज दौड़ा। उसने सोचा-"कछुआ तो अभी बहुत दूर ही होगा...वह भला कैसे तेज दौड़ पायेगा ? सूरज डूबने वाला था। उसने बहुत तेज दौड़ लगाई...उसे जीतना जो था ! सूरज डूबने से पहले ही वह बरगद के पेड़ तक पहुँच गया। पर यह क्या ...? कछुआ तो जंगल के पार...नदीके किनारे ...बरगद के पेड़ के नीचे आराम से बैठा हँस रहा था...!
खरगोश रेस हार गया ...! कछुआ जीत गया...!! उसे जीतना ही था...!!!
जंगल के सभी जानवर...सभी चिड़ियाँ ...आज भी हैरान हैं -"आख़िर खरगोश दौड़ में हार कैसे गया...?
दिवा दी डुमडुम तुम ही बताओ कछुआ क्यों जीत गया...?

कछुआ और ख़रगोश -1

दिवा दी डुमडुम !

क्या हाल-चाल है ?आजकल क्या-क्या कर रही हो ? अब तो तुमने चलना सीख लिया है और भाग-दौड़ करती रहती हो।

डुमडुम !
तुम मम्मा के साथ घर के काम में मदद तो करती हो पर कहीं सब उलट-पुलट करके मम्मा का काम बढ़ाती तो नहीं ?

मम्मा कहती है दिवा आजकल बहुत तेज दौड़ती है और मम्मा को अपने पीछे-पीछे दौड़ाती रहती है।

तुम्हारे तेज दौड़ने के नाम से मुझे 'कछुआ खरगोश' की कहानी याद आ गयी जिसे मैंने अपने बचपन में अपनी माँ से सुना था और आज तुम्हारी दादीमाँ ,ब्लॉग में ,तुम्हारे लिए लिख रही हैं।

तो शुरू करते हैं बहुत तेज दौड़ने वाले खरगोश और धीमे-धीमे सरकने वाले कछुए की कहानी ...!
देखें कहानी में है क्या...?

Monday, August 3, 2009