Friday, July 10, 2009

दिवा दी दुमदुम कहाँ गयी हो ?

मेरी प्यारी नन्ही-सी गुड़िया दिवा !
अब तुम एक साल की हो गयी और काफी समझदार भी ... है न ? जब तुम तीन-चार महीने की थी तब से ही तुमको पापा से कैसियो सुनना, उसे अपने नन्हे हाथों से बजाने की कोशिश करना, दादाजी से शेर, भालू, गब्बरसिंह और कालिया की कहानी सुनना बहुत अच्छा लगता था। मम्मा की लोरियाँ और दादी की कविताएँ सुन कर तुम खूब खुश होती थी। चाचाजी और चाचीजी को ऑनलाइन देख कर तुम उन्हें पहचान लेती थी और तुम्हारी प्यारी-सी मुस्कान हम सबको निहाल कर देती थी। बुआजी से फ़ोन पर गाना और ''दूध-दूध पियो ग्लास-फुल दूध" सुनकर तुम किलकारियाँ मार कर हँसा करती थी।
इस समय तुम डेनमार्क में मम्मा-पापा के साथ हो और मैं तुम्हारे चाचा-चाची के पास अमेरिका में इसलिए मैं तुम्हारे पास बैठ कर तुमसे बातें नहीं कर पा रही हूँ। पर दिवा मैं ब्लॉग में तुम्हारे लिए अच्छी-अच्छी कहानियाँ और कविताएँ लिख सकती हूँ जिनको सुन कर तुम बहुत खुश होगी। आज मैं वहीं तुम्हारे लिए एक कहानी लिख रही हूँ जिसे मैंने अपनी दादी से सुना था। यह कहानी एक चिड़िया और एक कौए की है। मेरी सोनू ! दुमदुम !! दिवा!!! मम्मा-पापा तुमको यह कहानी सुनायेंगे और फ़िर हमें बताएँगे कि हमारी राजकुमारी यह कहानी सुन कर कितनी खुश हुई ! तो चलो अब सुनाती हूँ तुमको एक चिड़िया और एक कौए की कहानी ......!

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