Tuesday, August 4, 2009

कछुआ और खरगोश -2

एक था कछुआ और एक था खरगोश ! दोनों एक जंगल में रहते थे।
दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे।
खरगोश हरदम उछलता-कूदता रहता था। वह बहुत तेज और बुद्धिमान था। जंगल के सभी जानवर उससे सलाह ले कर ही सब काम करते थे।
कछुआ बहुत सीधा- सादा था और हर समय अपनी खोल में दुबका रहता था। वह अपना हर काम खरगोश से सलाह लेकर करता था।
खरगोश कछुआ को मीठे-मीठे गाजर खिलाता था। कछुआ खरगोश को अपनी पीठ पर बैठा कर नदी में घुमाता था।
एक बार कछुए और खरगोश मैं बहस छिड़ गयी कि कौन तेज दौड़ता है ?उनकी बहस ख़तम ही नहीं हो रही थी । आस-पास के और जानवर और चिड़ियाँ सभी वहाँ आ गए। सबने उनकी बात सुनी।
सब जानवर जानते थे कि खरगोश बहु तेज दौड़ता है पर कछुआ अपनी जिद पर अड़ा रहा। उसने कहा -"मैं तेज दौड़ता हूँ ।" अंत में सबने कहा कि जंगल के अंत में बहने वाली नदी के किनारे वाले बरगद के पेड़ के पास , जो सूरज डूबने से पहले पहुँचेगा वही जीतेगा।
खरगोश और कछुए कि दौड़ शुरू हो गयी। दोनों दौड़ने लगे खरगोश बहुत आगे निकल गया।वह बहुत खुश था कि वह ही जीतेगा। धीमे-धीमे रेंगने वाला कछुआ भला दौड़ने में उससे कैसे जीतेगा ?
रास्ते में खरगोश को एक पीपल का पेड़ दिखा। खरगोश ने सोचा , "कछुआ तो अभी बहुत पीछे है। चलो थोड़ा सुस्ता लेता हूँ। " वह पीपल के पेड़ की छाया में लेट गया। ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी। खरगोश को नींद आ गयी।
कछुआ धीमे-धीमे दौड़ता ही रहा। उसे धूप लग रही थी। उसे प्यास भी लग रही थी पर वह रुका नहीं...दौड़ता ही रहा। वह तब तक दौड़ता रहा...दौड़ता ही रहा... जब तक कि बरगद का पेड़ नहीं आ गया
शाम होने वाली थी , तब जाकर खरगोश की नींद खुली। वह खूब तेज दौड़ा। उसने सोचा-"कछुआ तो अभी बहुत दूर ही होगा...वह भला कैसे तेज दौड़ पायेगा ? सूरज डूबने वाला था। उसने बहुत तेज दौड़ लगाई...उसे जीतना जो था ! सूरज डूबने से पहले ही वह बरगद के पेड़ तक पहुँच गया। पर यह क्या ...? कछुआ तो जंगल के पार...नदीके किनारे ...बरगद के पेड़ के नीचे आराम से बैठा हँस रहा था...!
खरगोश रेस हार गया ...! कछुआ जीत गया...!! उसे जीतना ही था...!!!
जंगल के सभी जानवर...सभी चिड़ियाँ ...आज भी हैरान हैं -"आख़िर खरगोश दौड़ में हार कैसे गया...?
दिवा दी डुमडुम तुम ही बताओ कछुआ क्यों जीत गया...?

2 comments:

  1. nice Divya blog : i also have an interesting blog regarding - Strange Things and Stories : at : http://strange0007.blogspot.com

    ReplyDelete